कर्तव्य निभाना
तजुर्बेकार आँखे ।
गमों की धूप में तप कर बरसती है।
सुखं की छाँव बन जातीं हैं ये बुढ़ी आँखे।
तजुर्बेकार परतों की झुरियाँ ।
ताउम्र सम्भालती है जब जिम्मेदारियाँ ।
निस्वार्थ काँधे पर बोंझ नही मानती।
कर्तव्य का एहसास जोड़ती है।
चादर में लपेट कर ममता की।
प्रभु की दृष्टि बन हमपर कृपा बरसाती है।
बूढ़ी आँखे उनकी नहीं बूढ़ी आँखे वो है ।
जो इनके अनुभूति का मर्म ना जान पाए।
पग में इनके स्वर्ग है पास ज़रा तो बैठो तो।
आशीष देकर सारी बलाएँ खुद ले लेती है।
सम्मान की आशा लिए क़ुर्बान जीवन कर देती है
पोतों पोती के संग फिर बच्चा बन जाती है।
निस्संदेह प्यार की चमक से चहकती है ये आँखे।
वयग्र हो अपनों के दुःख में तड़पती है ये आँखे।
प्रशन बहुत है उत्तर का इन्तजार करती हैं।
दो मीठे बोलो में अपनी परवाह को मान लेती है।
वेदनाओ में दवाओं से इतना फर्क नहीं पड़ता है।
अहमियत इनकी चंद लम्हों की गुजारिश अपनो की ।
नीलम गुप्ता 🌹🌹(नजरिया )🌹🌹
दिल्ली
Aliya khan
02-Aug-2021 09:28 AM
Bahut sundar
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